अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति 'क्रीम लेयर' पर सरकार ने रखा अपना पक्ष
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट के अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) में 'क्रीमीलेयर' बनाने के सुझाव पर सरकार ने शुक्रवार को अपना स्टैंड साफ कर दिया. कैबिनेट बैठक के बाद सरकार ने संविधान का हवाला दिया और साफ संकेत दिया कि आरक्षण के सिस्टम से छेड़छाड़ का उसका कोई इरादा नहीं है. सियासी तौर पर इस बेहद संवेदनशील मसले पर प्रमुख विपक्षी दलों की चुप्पी के बीच सरकार के इस स्टैंड को एडवांटेज लेने के तौर पर देखा जा रहा है.सरकार ने इसके जरिए यह संदेश देने की कोशिश की है कि वह आरक्षण के मसले पर दलितों और पिछड़ों के साथ खड़ी है. दरअसल इस फैसले के जरिए सरकार ने दो तरफ से बढ़त लेने की कोशिश की है.
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव की इस लाइन के बड़े हैं मायने
'बीआर आंबेडकर के संविधान के अनुसार एसी-एसटी के आरक्षण में क्रिमीलेयर का कोई प्रावधान नहीं है.' यह लाइन शुक्रवार देर रात कैबिनेट के फैसले की जानकारी देते केंद्रीय सूचना प्रसारण और रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कही. इस लाइन को गौर से पढ़ेंगे तो कई चीजें समझ आती हैं. इसमें बाबा साहेब बीआर आंबेडकर की भी बात है,संविधान का भी जिक्र है और साफतौर पर पूरी लाइन का निचोड़ यही है कि पार्टी दलितों के साथ मजबूती से खड़ी है और संविधान में शामिल उनके हितों की रक्षक है. ऐसे में अब विपक्षी दलों के लिए सरकार पर दलित या संविधान विरोधी होने का आरोप लगाना मुश्किल होगा. बीजेपी अपने इस फैसले के जरिए जवाब दे सकती है.आगामी चुनावों में बीजेपी इस मूव के जरिए दलितो हितों की हितैषी पार्टी के तौर पर खुद को और मजबूती से स्थापित करने की कोशिश करेगी. इसके साथ ही संविधान की बात कर बीजेपी ने विपक्ष की काट भी खोज ली है,जो उस पर चुनाव से लेकर संसद तक लगातार संविधान विरोधी होने का आरोप लगाते हुए घेर रहा था. हालांकि आपको ये भी बता दें कि केंद्र सरकार ने साफ तौर पर 'क्रीमी लेयर' को लेकर कुछ नहीं कहा है लेकिन जिस तरह की टिप्पणी केंद्रीय मंत्री ने किया है उसे इसी से जोड़कर देखा जा रहा है.
ऐसे में केंद्र सरकार ने ये तो साफ कर दिया है कि इस मुद्दे पर उन्होंने सबसे पहले स्टैंड लेकर ये साफ कर दिया है कि वो फिलहाल इस तरह का कोई प्रावधान लागू करने नहीं जा रही है. केंद्र सरकार का यह रुख इसलिए भी बेहद खास हो जाता है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी को लेकर ऐसा कहा जाने लगा था कि 'क्रीमी लेयर' का प्रावधान किया गया तो इससे एक बड़ा वर्ग नाराज हो सकता है.