RBI गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा,"डिपॉज़िट और क्रेडिट ग्रोथ के बीच आया अंतर अगर लगातार बना रहा,तो यह लिक्विडिटी की समस्या पैदा करेगा..."
नई दिल्ली:
RBI,यानी भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास का कहना है कि युवा भारतीय महत्वाकांक्षी हैं,और वे बैंकों में रकम जमा करने के स्थान पर स्टॉक मार्केट और म्यूचुअल फ़ंड जैसे उथलपुथल वाले बाज़ारों में पैसा लगा रहे हैं. इससे कोई फौरी दिक्कत नहीं आने वाली है,लेकिन अगर यही ट्रेंड बरकरार रहा,तो आगे चलकर लिक्विडिटी की समस्या आ सकती है,इसलिए बैंकों को इस पर नज़र रखते हुए उपाय सोचने चाहिए,और ऐसी स्कीम या प्रोडक्ट लॉन्च करने चाहिए,जिनसे आकर्षित होकर उनके पास डिपॉज़िट आता रहे.
"शेयरों में भारतीयों का पैसा लगाना अच्छा है..."
NDTV के एडिटर-इन-चीफ़ संजय पुगलिया के साथ एक्सक्लूसिव इंटरव्यू के दौरान RBI प्रमुख ने कहा,"भारतीय युवा इंटरनेट युग में बेहद महत्वाकांक्षी हैं,और ऐसा सारी दुनिया में होता है... इंटरनेट से सब कुछ सामने आता है,और युवा अलग-अलग जगह पैसा लगाते हैं... यह अच्छा ट्रेंड है,और इससे सामने आता है कि युवाओं को देश की अर्थव्यवस्था पर भरोसा है... इस पर हम सिर्फ़ बैंकों को प्रोएक्टिव होने की सलाह दे रहे हैं... इस ट्रेंड से तुरंत कोई नुकसान नहीं होने जा रहा है,लेकिन आगे चलकर यह स्ट्रक्चरल लिक्विडिटी की समस्या पैदा कर सकता है...""लम्बे वक्त तकडिपॉज़िट,क्रेडिट ग्रोथ में असंतुलन ठीक नहीं..."
शक्तिकांत दास ने कहा,तो यह लिक्विडिटी की समस्या पैदा करेगा... क्रेडिट बढ़ रहा हो,लेकिन डिपॉज़िट न बढ़े,तो साल-छह महीने तक कोई दिक्कत नहीं होने वाली... यह ट्रेंड भी पिछले साल से ही शुरू हुआ है... लेकिन यह अगर लगातार बरकरार रहा,तो दिक्कत हो सकती है,इसलिए बैंकों को प्रोएक्टिव तरीके से लिक्विडिटी मैनेजमेंट पर बेहद सावधानी से काम करना होगा तथा डिपॉज़िट और क्रेडिट ग्रोथ के बीच संतुलन बनाना होगा..."इसके साथ ही RBI गवर्नर ने यह भी कहा कि बैंक भी इस भावी समस्या को समझ रहे हैं. उन्होंने कहा,"सकारात्मक बात यह है कि बैंक भी इसे समझ रहे हैं,और कई बैंक इन्फ़्रास्ट्रक्चर बॉण्ड के ज़रिये पैसा जुटाने लगे हैं... इन्फ़्रास्ट्रक्चर बॉण्ड की खासियत होती है कि वे आकर्षक कीमत पर मिलते हैं,और बैंकों के लिहाज़ से देखें,तो इन्फ़्रास्ट्रक्चर बॉण्ड डिपॉज़िट नहीं हैं,इसलिए बैंकों को रिज़र्व रिक्वायरमेंट भी नहीं होती है,यानी बैंकों के लिए यह बंधन नहीं रहेगा कि CRR में इतनी रकम रखनी ही होगी..."
RBI प्रमुख ने यह भी कहा,"एक और नई बात है,जो कुछ सालों से हो रहा है... तकनीक की वजह से क्रेडिट ग्रोथ और क्रेडिट डिसबर्समेंट बेहद तेज़ हो गया है... आज किसी भी मोबाइल के ज़रिये कर्ज़ तुरंत लिया जा सकता है,लेकिन डिपॉज़िट के लिए आज तक बैंक ही जाना पड़ता है... इसलिए पिछली मॉनीटरी पॉलिसी के दौरान मैंने कहा था,बैंकों को नए-नए डिपॉज़िट प्रोडक्ट लाने चाहिए,औऱ अपनी शाखाओं के नेटवर्क का इस्तेमाल करना चाहिए..."इसके अलावा,इसी से जुड़े स्टेबिलिटी ऑफ़ बैंकिंग के मुद्दे पर बात करते हुए शक्तिकांत दास ने कहा,"बैंकों और NBFC के गवर्नैन्स के स्तर पर ध्यान दिया गया है,और पिछले कुछ सालों में इसमें सुधार भी देखा गया है..."