इंसाफ की जंग जो 30 साल से जारी है, जानिए उमा कृष्णैया की कहानी

बिहार के बाहुबली नेता आनंद मोहन की समय से पहले रिहाई को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट आज सुनवाई करेगा. गोपालगंज के पूर्व जिलाधिकारी जी. कृष्णैया की हत्या में 16 साल बाद सलाखों के पीछे से छूटे आनंद मोहन को पिछली सुनवाई में कोर्ट ने तुरंत अपना पासपोर्ट जमा करने के लिए कहा था. आनंद मोहन की रिहाई के साथ कृष्णैया की पत्नी ने उमा ने न्याय के लिए जंग फिर शुरू कर दी है. अपने पति को न्याय और आनंद मोहन को फिर सलाखों के पीछे भेजने के लिए वह एक बार सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे पर हैं. वह 30 सालों से संघर्ष कर रही हैं. इंसाफ की इस लड़ाई में उमा कृष्णैया की कहानी काफी उतार-चढ़ाव से भरी रही है...

उस दिन क्या हुआ था


5 दिसंबर,1994 की तपती दोपहर,एक मीटिंग में शामिल होने के बाद तत्कालीन गोपालगंज के जिलाधिकारी जी.कृष्णैया वापस लौट रहे थे. जी.कृष्णैया अपने काफिले के साथ लालबत्ती वाली सरकारी एम्बेसडर कार में सवार थे. कृष्णैया को यह पता नहीं था कि आगे सड़क पर हंगामा हो रहा है.

दसअसल,1 दिन पहले बिहार के मुजफ्फरपुर में चर्चित गैंगस्टर छोटन शुक्ला की गैंगवार में हत्या हुई थी. हजारों लोग NH-28 पर खबरा में शव के साथ प्रदर्शन कर रहे थे. भीड़ ने अचानक हाईवे पर एक लाल बत्ती वाली कार गुजरते देखी. गाड़ी में गोपालगंज के डीएम जी. कृष्णैया बैठे थे. गुस्साई भीड़ ने IAS अधिकारी का कार पर पथराव शुरू कर दिया. उनके सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें बचाने की कोशिश की. लेकिन कामयाब नहीं हो सके. उग्र भीड़ ने कृष्णैया को गाड़ी से बाहर खींच लिया. ईंट-पत्थर से पीट-पीटकर उनकी हत्या कर दी. डीएम की कनपटी में एक गोली भी मार दी थी. वो चीख-चीख कर लोगों को बता रहे थे कि मैं मुजफ्फरपुर का डीएम नहीं हूं.

'आनंद मोहन ने भीड़ को उकसाया था'

जी. कृष्णैया हत्याकांड में बिहार के चर्चित गैंगस्टर और पूर्व सांसद आनंद मोहन का नाम आया. आरोप था कि डीएम की हत्या करने वाली भीड़ को कुख्यात आनंद मोहन ने ही उकसाया था. पुलिस ने FIR में आनंद मोहन समेत 6 लोगों को नामजद किया था.

साल 2007 में पटना हाईकोर्ट ने आनंद मोहन को दोषी करार दिया और फांसी की सजा सुना थी. हालांकि 2008 में इस सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया गया था. साल 2012 में आनंद मोहन सिंह ने सुप्रीम कोर्ट से सजा कम करने की अपील की थी,जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था.

सुप्रीम कोर्ट में बिहार सरकार ने क्या कहा?

बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना हलफनामा दर्ज किया था,जिसमें उसने कहा था कि आम जनता या लोक सेवक की हत्या करना एक जैसा नहीं है. उम्रकैद की सजा काट रहे दोषी को केवल इस वजह से छूट देने से इनकार नहीं कर दिया जाता क्योंकि मारा गया व्यक्ति लोक सेवक था. मोहन को 1994 में गोपालगंज जिला मजिस्ट्रेट की हत्या के लिए उकसाने के आरोप में उम्रकैद की सजा हुई थी,लेकिन नियमों में 10 अप्रैल को संशोधन किया गया और गैंगस्टर से नेता बने आनंद मोहन 7 अप्रैल को जेल से बाहर आ गए.

नीतीश सरकार ने जेल नियमावली में किया बदलाव


नीतीश कुमार सरकार ने 10 अप्रैल को बिहार की जेल नियमावली में बदलाव किया और उन मामलों की सूची से 'ड्यूटी पर तैनात जनसेवक की हत्या' उपबंध को हटा दिया,जिनमें जेल की सजा में माफी पर विचार नहीं किया जा सकता है.

कौन थे जी कृष्णैया


आइएएस जी. कृष्णैया का जन्म तत्कालीन आंध्रप्रदेश के महबूबनग (वर्तमान तेलंगाना) के एक दलित परिवार में हुआ था. कृष्णैया 1985 बैच के बिहार कैडर के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी थे. हत्या के वक्त उनकी उम्र 35 साल थी. वह उस गोपालगंज में जिलाधिकारी थे,जो तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद का गृह जिला था.

आनंद मोहन के बारे में...


आनंद मोहन का जन्म बिहार के सहरसा जिले के पचगछिया गांव में हुआ था. 1974 में जेपी आंदोलन से आनंद मोहन ने राजनीति में कदम रखा और इमरजेंसी के दौरान उन्हें दो साल तक जेल में रहना पड़ा. 1980 में उसने समाजवादी क्रांति सेना की स्थापना की. इसके बाद हत्या,लूट,अपहरण के कई मामलों में उसका नाम शामिल होता चला गया. और फिर 1990 में आनंद मोहन की राजनीति में एंट्री हुई.

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